बस याद करो वो दिन,
जब हुऐ थे जुर्म संगीन,
दहल उठी थी मुंबई की ज़मीन,
और हो गये थे सबके चेहरे रंगीन,
ये दिन थे कितने अजीब,
पर वही थे मुंबई के नसीब,
याद बन के रह गए जो थे,
उस दुर्घटना के करीब.
कुर्बान हो गए वो सारे लोग,
जो नहीं थे दुसरो की तरह दरपोक,
आँखों में नमी छोर गए चले गए वो लोग..............
चले गए वो लोग........